3249.*पूर्णिका*
3249.*पूर्णिका*
🌷 पानी की तरह बहते रहे🌷
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पानी की तरह बहते रहे ।
अपनों की तरह कहते रहे।।
ये बदले नहीं हालात भी ।
बेदर्द की तरह सहते रहे ।।
दुनिया बस तमाशा देखती।
गूँगों की तरह रहते रहे ।।
देखो घाम में छाया नहीं ।
बस अग्नि की तरह दहते रहे।।
अरमाँ संभले खेदू यहाँ ।
भीतों की तरह ढ़हते रहे।।
……✍ डॉ. खेदू भारती “सत्येश”
08-04-2024सोमवार