3247.*पूर्णिका*
3247.*पूर्णिका*
🌷 बात समझ में आने लगी🌷
22 22 2212
बात समझ में आने लगी ।
मदहोश नशा छाने लगी ।।
खुशियों की जब बारिश हुई ।
नवगीत जहाँ गाने लगी ।।
खून बहा कितना गम नहीं ।
पीड़ा दिल को भाने लगी ।।
जीने का है हमराज सनम।
पास जरा सा आने लगी ।।
दामन प्यारा थामे यहाँ ।
मंजिल अपनी पाने लगी ।।
कहते मस्त खेदू कसम से।
हरदिन भेजा खाने लगी ।।
……✍ डॉ. खेदू भारती “सत्येश”
08-04-2024सोमवार