3- विद्यार्थी व शिक्षक
विद्यार्थी व शिक्षक
करता जो अर्जित विद्या, विद्यार्थी कहलाता।
गुरू और शिष्य मद्य, बड़ा मधुर भाता ।।
विद्यार्थी को शिक्षा देना, शिक्षक का फर्ज़ है।
शिष्य पर गुरू का यह, बहुत बड़ा कर्ज़ है ।।
पुरातन समय में शिक्षा, गुरूकुल में होती।
दिन-रात रहकर वहाँ जलाते, शिक्षा की ज्योति।।
करना गुरू की सेवा, विद्यार्थी का धर्म था।
आज्ञा पालन गुरू की, सबसे बड़ा कर्म था।।
गुरू की आज्ञा से, जाते माँगने को भिक्षा।
तन-मन से देते गुरू, शिष्यों को शिक्षा ।।
वर्तमान में बदल गई, शिक्षा की पद्यति।
पीकर दारू शिष्य गुरू, करें पद की दुर्यति।।
मान-सम्मान घटा शिक्षक का, इस काल में।
छिन्न-भिन्न रिश्ते मर्यादा, बुरे हाल में ।।
पढ़ना-लिखना लेषमात्र, रात-दिन आन्दोलन ।
सम्मान शिक्षकों का नहीं, नहीं आज्ञापालन।।
“दयानंद “