10-भुलाकर जात-मज़हब आओ हम इंसान बन जाएँ
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उदासी से भरे चहरों की हम मुस्कान बन जाएँ
घृणा के दौर में भी प्रेम की पहचान बन जाएँ
हमारे देश की मिट्टी किसी से भेद कब की है
भुलाकर जात-मज़हब आओ हम इंसान बन जाएँ
~अजय कुमार ‘विमल’
उदासी से भरे चहरों की हम मुस्कान बन जाएँ
घृणा के दौर में भी प्रेम की पहचान बन जाएँ
हमारे देश की मिट्टी किसी से भेद कब की है
भुलाकर जात-मज़हब आओ हम इंसान बन जाएँ
~अजय कुमार ‘विमल’