2758. *पूर्णिका*
2758. पूर्णिका
बात कुछ समझते कहाँ है
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बात कुछ समझते कहाँ है ।
चमन अब महकते कहाँ है ।।
जिंदगी की अजब कहानी ।
पंछियां चहकते कहाँ है ।।
होश रख जोश सब दिखाते।
ये कदम बहकते कहाँ है ।।
उन्नतियां देख जलन होती ।
आग भी दहकते कहाँ है ।।
राज बस जान आज खेदू।
राह में भटकते कहाँ है ।।
………..✍ डॉ .खेदू भारती”सत्येश”
23-11-2023गुरूवार