2733. *पूर्णिका*
2733. पूर्णिका
क्या अभिलाषा और निराशा
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क्या अभिलाषा और निराशा।
जां ये जिंदगी मस्त परिभाषा ।।
चाहत अपनी कितनी सुंदर।
छू मंतर यूं आज हताशा।।
जीत यहाँ हार यहाँ देखो।
दुनियादारी खेल तमाशा ।।
अजब गजब संसार निराला ।
महके बगियों सा कुछ आशा ।।
प्यार जहाँ है खुशियाँ खेदू ।
रस घोले मधु अपनी भाषा ।।
…………✍ डॉ .खेदू भारती”सत्येश”
18-11-2023शनिवार