*भारतीय जीवन बीमा निगम : सरकारी दफ्तर का खट्टा-मीठा अनुभव*
कोई बोले नहीं सुन ले, होता है कब कहां
जब हम गरीब थे तो दिल अमीर था "कश्यप"।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
दूसरे का चलता है...अपनों का ख़लता है
मैं कभी किसी के इश्क़ में गिरफ़्तार नहीं हो सकता
गर तहज़ीब हो मिट्टी सी
Abhinay Krishna Prajapati-.-(kavyash)
कुछ बड़ा करने का वक़्त आ गया है...
*यदि उसे नजरों से गिराया नहीं होता*
जिंदगी मैं हूं, मुझ पर यकीं मत करो
अपनी ही हथेलियों से रोकी हैं चीख़ें मैंने
दुनिया में हज़ारों हैं , इन्सान फ़रिश्तों से ,
लेकिन मैं तो जरूर लिखता हूँ