*साड़ी का पल्लू धरे, चली लजाती सास (कुंडलिया)*
यूं सजदे में सर झुका गई तमन्नाएं उसकी,
ये दिल उन्हें बद्दुआ कैसे दे दें,
जब काँटों में फूल उगा देखा
मैं तुम्हें भरोसा ना दे सका गुड़िया
कौन कहता है कि अश्कों को खुशी होती नहीं
मैंने हर मुमकिन कोशिश, की उसे भुलाने की।
कुछ रातों के घने अँधेरे, सुबह से कहाँ मिल पाते हैं।
अश्क तन्हाई उदासी रह गई - संदीप ठाकुर
मर्म का दर्द, छिपाना पड़ता है,
आओ कभी स्वप्न में मेरे ,मां मैं दर्शन कर लूं तेरे।।
वेतन की चाहत लिए एक श्रमिक।
अपने देश की अलग एक पहचान है,