"धन-दौलत" इंसान को इंसान से दूर करवाता है!
बुझी नहीं है आज तक, आजादी की आग ।
मेरे जीवन के दो साल कम कर दो,पर….
*सभी कर्मों का अच्छा फल, नजर फौरन नहीं आता (हिंदी गजल)*
तुम्हारी पथ के कांटे मैं पलकों से उठा लूंगा,
उसने कहा जो कुछ तो पहले वो
वो हर खेल को शतरंज की तरह खेलते हैं,
केशव तेरी दरश निहारी ,मन मयूरा बन नाचे
आप देखो जो मुझे सीने लगाओ तभी
खुद पर भी यकीं,हम पर थोड़ा एतबार रख।
सांसों की इस सेज पर, सपनों की हर रात।