2712.*पूर्णिका*
2712.*पूर्णिका*
रहबर बन जाते कोई
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रहबर बन जाते कोई।
दिलबर बन जाते कोई।।
मिलती मंजिल खुशियों की।
दुनिया बन जाते कोई।।
राहत की लेते सांसे।
चाहत बन जाते कोई ।।
देखा करते हम सपने।
अपना बन जाते कोई।।
नेक नसीब यहाँ खेदू।
धड़कन बन जाते कोई।।
……….✍डॉ .खेदू भारती “सत्येश”
10-11-23 शुक्रवार