शिक्षक दिवस
पाण्डेय चिदानन्द "चिद्रूप"
जीवन में उन सपनों का कोई महत्व नहीं,
एक दिया बहुत है जलने के लिए
नशे की दुकान अब कहां ढूंढने जा रहे हो साकी,
किसी के साथ सोना और किसी का होना दोनों में ज़मीन आसमान का फर
मै पत्नी के प्रेम में रहता हूं
An eyeopening revolutionary poem )क्यूँ दी कुर्बानी?)
घमंड की बीमारी बिलकुल शराब जैसी हैं
बह्र-2122 1212 22 फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ैलुन काफ़िया -ऐ रदीफ़ -हैं
फिर किसे के हिज्र में खुदकुशी कर ले ।
- रिश्ते व उनकी रिश्तेदारिया -
झूठ को सच बनाने की कोशिश में,
अब आदमी के जाने कितने रंग हो गए।
ज़िंदगी में छोटी-छोटी खुशियाॅं
जिंदगी तो पहले से बिखरी हुई थी
कुदरत और भाग्य के रंग..... एक सच
कोई दौलत पे, कोई शौहरत पे मर गए