सुना है हमने दुनिया एक मेला है
जीवन भर मरते रहे, जो बस्ती के नाम।
धोरां वाळो देस
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
लगता नहीं है इस जहां में अब दिल मेरा ,
मेरी ज़रूरतें हैं अजब सी बड़ी, कि मैं,
एक विद्यार्थी जब एक लड़की के तरफ आकर्षित हो जाता है बजाय कित
जिंदगी के और भी तो कई छौर हैं ।
हैं जो कुछ स्मृतियां वो आपके दिल संग का
* क्यों इस कदर बदल गया सब कुछ*
*अज्ञानी की कलम*
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
कितने अकेले हो गए हैं हम साथ रह कर
उम्मीद से सजे ये छोटी सी जिंदगी
प्रेम की सबसे सुंदर अभिव्यक्ति
■ बेशर्म सियासत दिल्ली की।।