मान न मान मैं तेरा मेहमान
నేటి ప్రపంచం
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
जब हम स्पष्ट जीवन जीते हैं फिर हमें लाभ हानि के परवाह किए बि
हुआ जो मिलन, बाद मुद्दत्तों के, हम बिखर गए,
लोग तुम्हे जानते है अच्छी बात है,मायने तो यह रखता है की आपको
अपने दर्द को तू यूं सरे-आम न कर
ईश्वर की कृपा दृष्टि व बड़े बुजुर्ग के आशीर्वाद स्वजनों की द
इंसान को इतना पाखंड भी नहीं करना चाहिए कि आने वाली पीढ़ी उसे
*पीयूष जिंदल: एक सामाजिक व्यक्तित्व*