ज्वलंत संवेदनाओं से सींची धरातल, नवकोपलों को अस्वीकारती है।
आलस्य एक ऐसी सर्द हवा जो व्यक्ति के जीवन को कुछ पल के लिए रा
" पाती जो है प्रीत की "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
23/184.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
लौ मुहब्बत की जलाना चाहता हूँ..!
हरे की हार / मुसाफ़िर बैठा
दो दिन की जिंदगानी रे बन्दे
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
ग़ज़ल -टूटा है दिल का आइना हुस्नो ज़माल में
ग़ज़ल _ आइना न समझेगा , जिन्दगी की उलझन को !
चले शहर की ओर जब,नवयुवकों के पाँव।
तू छीनती है गरीब का निवाला, मैं जल जंगल जमीन का सच्चा रखवाला,
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
कब तक छुपाकर रखोगे मेरे नाम को
मुझे उसको भूल जाना पड़ेगा
नरेंद्र
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
* बेटों से ज्यादा काम में आती हैं बेटियॉं (हिंदी गजल)*