नज़ारे स्वर्ग के लगते हैं
सताती दूरियाँ बिलकुल नहीं उल्फ़त हृदय से हो
ना कहीं के हैं हम - ना कहीं के हैं हम
जो लोग बिछड़ कर भी नहीं बिछड़ते,
हिंदी की पदोन्नति का सपना
धन्य करें इस जीवन को हम, चलें अयोध्या धाम (गीत)
कुदरत है बड़ी कारसाज
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
जिस्म झुलसाती हुई गर्मी में..
गलत बात को सहना भी गलत बात होती है,