2696.*पूर्णिका*
2696.*पूर्णिका*
शहर नहीं गांव नहीं
22 22 22
शहर नहीं गांव नहीं ।
धूप नहीं छांव नहीं ।।
रोज मस्ती में मस्त है ।
हाथ नहीं पांव नहीं ।।
कोयल की कूक कहाँ ।
काक नहीं कांव नहीं ।।
आज करोगे क्या तुम ।
ताव नहीं आंव नहीं ।।
दुनिया रोएं खेदू।
भाव नहीं दांव नहीं ।।
……….✍डॉ .खेदू भारती “सत्येश”
06-11-23 सोमवार