यही रात अंतिम यही रात भारी।
जीवन के अंतिम पड़ाव पर लोककवि रामचरन गुप्त द्वारा लिखी गयीं लघुकथाएं
इतना तो करम है कि मुझे याद नहीं है
ना मंजिल की कमी होती है और ना जिन्दगी छोटी होती है
छंद मुक्त कविता : अनंत का आचमन
बातों में बनावट तो कही आचरण में मिलावट है
अंतर्मन विवशता के भवर में है फसा
तमाम रात वहम में ही जाग के गुज़ार दी
जब भर पाया ही नहीं, उनका खाली पेट ।
तेरी इस वेबफाई का कोई अंजाम तो होगा ।
लाल बहादुर
Sarla Sarla Singh "Snigdha "