कौवों को भी वही खिला सकते हैं जिन्होंने जीवित माता-पिता की स
तलाशता हूँ - "प्रणय यात्रा" के निशाँ
हर बार धोखे से धोखे के लिये हम तैयार है
आधुनिक टंट्या कहूं या आधुनिक बिरसा कहूं,
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
ग़ज़ल _ आज उनको बुलाने से क्या फ़ायदा।
मतदान जरूरी है - हरवंश हृदय
परछाईयों की भी कद्र करता हूँ
समस्याओं से भागना कायरता है
ये बेपरवाही जंचती है मुझ पर,
Do your best and then let go. Everyone has limitations , and
माँ का प्यार
Sandhya Chaturvedi(काव्यसंध्या)
दिल के इस दर्द को तुझसे कैसे वया करु मैं खुदा ।
आज का पुरुष औरतों को समान अधिकार देने की बात कहता है, बस उसे
ग़म का लम्हा, तन्हा गुज़ारा किजिए "ओश"
मिला है जब से साथ तुम्हारा