2677.*पूर्णिका*
2677.*पूर्णिका*
मुझे मालूम है
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मुझे मालूम है ।
खिले कब कुसुम है ।।
खुशी क्या गम कहाँ ।
बहार गुमसुम है ।।
यही कुछ मानते ।
न मैं और तुम है ।।
रिश्तें भी बिखरते ।
लगा न कुमकुम है ।।
खेदू जिंदगी।
जरा मासूम है ।।
……..✍डॉ .खेदू भारती “सत्येश”
03-11-23 शुक्रवार