किसी से प्यार, हमने भी किया था थोड़ा - थोड़ा
" *लम्हों में सिमटी जिंदगी* ""
पूछ लेना नींद क्यों नहीं आती है
ऐ ख़ुदा इस साल कुछ नया कर दें
ग़ज़ल _ खुशी में खुश भी रहो ,और कामना भी करो।
साहित्य चेतना मंच की मुहीम घर-घर ओमप्रकाश वाल्मीकि
रखें बड़े घर में सदा, मधुर सरल व्यवहार।
कांग्रेस के नेताओं ने ही किया ‘तिलक’ का विरोध
इक परी हो तुम बड़ी प्यारी हो
मेरे हमदर्द मेरे हमराह, बने हो जब से तुम मेरे
खैरात बांटने वाला भी ख़ुद भिखारी बन जाता है,