नए दौर का भारत
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
मैं भी तुम्हारी परवाह, अब क्यों करुँ
फागुन आया झूमकर, लगा सताने काम।
23/38.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
फूल का शाख़ पे आना भी बुरा लगता है
यक़ीनन एक ना इक दिन सभी सच बात बोलेंगे
■ एक स्वादिष्ट रचना श्री कृष्ण जन्माष्टमी की पूर्व संध्या कान्हा जी के दीवानों के लिए।
*बारिश सी बूंदों सी है प्रेम कहानी*
जब किसान के बेटे को गोबर में बदबू आने लग जाए
"UG की महिमा"
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
विरोध-रस की काव्य-कृति ‘वक्त के तेवर’ +रमेशराज
करूँ तो क्या करूँ मैं भी ,
गर तुम मिलने आओ तो तारो की छाँव ले आऊ।
मौसम ए बहार क्या आया ,सभी गुल सामने आने लगे हैं,
छोड़ने वाले तो एक क्षण में छोड़ जाते हैं।
किसी की याद में आंसू बहाना भूल जाते हैं।