लोकतांत्रिक मूल्य एवं संवैधानिक अधिकार
अत्यधिक खुशी और अत्यधिक गम दोनो अवस्थाएं इंसान के नींद को भं
यूं तेरी आदत सी हो गई है अब मुझे,
*Each moment again I save*
सताता है मुझको मेरा ही साया
फूल
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
"I'm someone who wouldn't mind spending all day alone.
मुझे क्या मालूम था वह वक्त भी आएगा
प्यार खुद से कभी, तुम करो तो सही।
साँझ- सवेरे योगी होकर, अलख जगाना पड़ता है ।