पितरों के सदसंकल्पों की पूर्ति ही श्राद्ध
चकाचौंध की दुनियां से सदा डर लगता है मुझे,
खिड़कियाँ -- कुछ खुलीं हैं अब भी - कुछ बरसों से बंद हैं
मानव विध्वंसों की लीलायें
ऐसे रूठे हमसे कि कभी फिर मुड़कर भी नहीं देखा,
*रिश्ता होने से रिश्ता नहीं बनता,*
*मांसाहारी अर्थ है, बनना हिंसक क्रूर (कुंडलिया)*
खुद पर भी यकीं,हम पर थोड़ा एतबार रख।
तेरे मेरे दरमियाँ ये फ़ासला अच्छा नहीं
तुम रख न सकोगे मेरा तोहफा संभाल कर।
फूल सूखी डाल पर खिलते नहीं कचनार के