नये सफर में गये हो जब से बड़ी शराफत दिखा रहे हो।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
हर हाल मे,जिंदा ये रवायत रखना।
हमसे कर ले कुछ तो बात.. दिसंबर में,
जल्दी-जल्दी बीत जा, ओ अंधेरी रात।
23/115.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
हम न रोएंगे अब किसी के लिए।
मेरे सिवा अब मुझे कुछ याद नहीं रहता,
रक्तदान पर कुंडलिया
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
अगर हम कोई भी काम जागरूकता के साथ करेंगे तो हमें निराशा नहीं
*हिन्दी हमारी शान है, हिन्दी हमारा मान है*
बगल में कुर्सी और सामने चाय का प्याला