चिराग को जला रोशनी में, हँसते हैं लोग यहाँ पर।
यह जिंदगी मेरी है लेकिन..
मजबूर हूँ यह रस्म निभा नहीं पाऊंगा
‘ विरोधरस ‘---2. [ काव्य की नूतन विधा तेवरी में विरोधरस ] +रमेशराज
*** "आज नदी क्यों इतना उदास है .......? " ***
तुझसे उम्मीद की ज़रूरत में ,
मौसम ए बहार क्या आया ,सभी गुल सामने आने लगे हैं,
- दिल की धड़कन में बसी हो तुम -
ये यादों की किस्तें जाने कबतक रुलायेंगी।
मैं अक्सर उसके सामने बैठ कर उसे अपने एहसास बताता था लेकिन ना
प्यार क्या होता, यह हमें भी बहुत अच्छे से पता है..!
Tum ibadat ka mauka to do,
डिग्रियों का कभी अभिमान मत करना,
भारत की गौरवभूमि में जन्म लिया है