तू जाएगा मुझे छोड़ कर तो ये दर्द सह भी लेगे
दिलों का हाल तु खूब समझता है
ताड़का जैसी प्रवृति और श्याम चाहती हैं,सूपर्णखा सी स्त्रियां
भरे मन भाव अति पावन, करूँ मैं वंदना शिव की।
थोड़ा सा अजनबी बन कर रहना तुम
एक पौधा तो अपना भी उगाना चाहिए
गंगा सेवा के दस दिवस (द्वितीय दिवस)
मेरे जज़्बात को चिराग कहने लगे
रंग ही रंगमंच के किरदार होते हैं।
प्रतिशोध
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
आ चलें हम भी, इनके हम साथ रहें
'चाह' लेना ही काफ़ी नहीं है चाहत पूरी करने को,
*चलिए बाइक पर सदा, दो ही केवल लोग (कुंडलिया)*
--बेजुबान का दर्द --
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार