मुझे भी लगा था कभी, मर्ज ऐ इश्क़,
लड़ता रहा जो अपने ही अंदर के ख़ौफ़ से
Pyaaar likhun ya naam likhun,
मैं भी कोई प्रीत करूँ....!
singh kunwar sarvendra vikram
घर की गृहलक्ष्मी जो गृहणी होती है,
मस्तियाँ दे शौक़ दे माहौल भी दे ज़िन्दगी,
खाली सूई का कोई मोल नहीं 🙏
बिहार के रूपेश को मिलेगा "विश्व भूषण सम्मान- 2024"
आजकल गरीबखाने की आदतें अमीर हो गईं हैं
हिंदी दोहे विषय- मंगल
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
ना जमीं रखता हूॅ॑ ना आसमान रखता हूॅ॑
कैसे हो गया बेखबर तू , हमें छोड़कर जाने वाले
फूल भी हम सबको जीवन देते हैं।
जब लोग आपके विरुद्ध अधिक बोलने के साथ आपकी आलोचना भी करने लग
हसीन चेहरे पर बहकने वाले को क्या ख़बर
कागज को तलवार बनाना फनकारों ने छोड़ दिया है ।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"