*जीता हमने चंद्रमा, खोज चल रही नित्य (कुंडलिया )*
दलित साहित्य / ओमप्रकाश वाल्मीकि और प्रह्लाद चंद्र दास की कहानी के दलित नायकों का तुलनात्मक अध्ययन // आनंद प्रवीण//Anandpravin
लोकतंत्र की आड़ में तानाशाही ?
हर इंसान होशियार और समझदार है
वह मुझे दोस्त कहता, और मेरी हर बेबसी पर हँसता रहा ।
जीवन साथी,,,दो शब्द ही तो है,,अगर सही इंसान से जुड़ जाए तो ज
कुछ ही दिन में दिसंबर आएगा,
चलो , फिर करते हैं, नामुमकिन को मुमकिन ,
कहनी चाही कभी जो दिल की बात...
अपने हुस्न पर इतना गुरूर ठीक नहीं है,