शीर्षक:-सुख तो बस हरजाई है।
मैं नहीं हूं अपने पापा की परी
जहां शिक्षा है वहां विवेक है, ज्ञान है।
जन जन फिर से तैयार खड़ा कर रहा राम की पहुनाई।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
जीवन की सुरुआत और जीवन का अंत
पुष्प सम तुम मुस्कुराओ तो जीवन है ।
हर तरफ भीड़ है , भीड़ ही भीड़ है ,
वक्त के साथ लड़कों से धीरे धीरे छूटता गया,
हो कहीं न कहीं ग़लत रहा है,
जब तक इंसान धार्मिक और पुराने रीति रिवाजों को तर्क के नजरिए
फूल और भी तो बहुत है, महकाने को जिंदगी