सजा दे ना आंगन फूल से रे माली
23/191.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
आज के दौर में मौसम का भरोसा क्या है।
तुम्हें भुलाने का सामर्थ्य नहीं है मुझमें
वो नन्दलाल का कन्हैया वृषभानु की किशोरी
*खिलना सीखो हर समय, जैसे खिले गुलाब (कुंडलिया)*
********* प्रेम मुक्तक *********
केशव तेरी दरश निहारी ,मन मयूरा बन नाचे
हमने देखा है हिमालय को टूटते
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
प्रशांत सोलंकी
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
बहुत भूत भविष्य वर्तमान रिश्ते प्रेम और बाकी कुछ भी सोचने के
क्यों खफा है वो मुझसे क्यों भला नाराज़ हैं
पता नहीं किसी को कैसी चेतना कब आ जाए,
*"बीजणा" v/s "बाजणा"* आभूषण
लोककवि पंडित राजेराम संगीताचार्य
चाय की आदत
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
लोगों को ये चाहे उजाला लगता है