प्रिंट मीडिया का आभार
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
तुम चंद्रछवि मृगनयनी हो, तुम ही तो स्वर्ग की रंभा हो,
दिगपाल छंद{मृदुगति छंद ),एवं दिग्वधू छंद
वो इश्क जो कभी किसी ने न किया होगा
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी "
बंधी मुठ्ठी लाख की : शिक्षक विशेषांक
"प्रकृति गीत"
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
आप खुद को हमारा अपना कहते हैं,
कुछ पल जिंदगी के उनसे भी जुड़े है।
23/171.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
उनसे कहना ज़रा दरवाजे को बंद रखा करें ।
प्रकृति ने अंँधेरी रात में चांँद की आगोश में अपने मन की सुंद
*अभिनंदनीय हैं सर्वप्रथम, सद्बुद्धि गणेश प्रदाता हैं (राधेश्
पुरानी यादें ताज़ा कर रही है।