बड़ा सा आँगन और गर्मी की दुपहरी मे चिट्ठी वाले बाबा (डाकिया)
गर्मी और नानी का आम का बाग़
एक वक्त था जब ज़माना अपना था और तुम अजनबी से, अब देखो ज़माना
फैला था कभी आँचल, दुआओं की आस में ,
*श्री महेश राही जी (श्रद्धाँजलि/गीतिका)*
** लोभी क्रोधी ढोंगी मानव खोखा है**
तपाक से लगने वाले गले , अब तो हाथ भी ख़ौफ़ से मिलाते हैं
गुरु महाराज के श्री चरणों में, कोटि कोटि प्रणाम है
इस उरुज़ का अपना भी एक सवाल है ।
एक लड़की एक लड़के से कहती है की अगर मेरी शादी हो जायेगी तो त
हौसलों की उड़ान जो भरते हैं,