माँ को अर्पित कुछ दोहे. . . .
कविता
Sarla Sarla Singh "Snigdha "
"सफ़ीना हूँ तुझे मंज़िल दिखाऊँगा मिरे 'प्रीतम'
कविता: माँ मुझको किताब मंगा दो, मैं भी पढ़ने जाऊंगा।
ट्रेन का रोमांचित सफर........एक पहली यात्रा
अब उनके ह्रदय पर लग जाया करती है हमारी बातें,
55…Munsarah musaddas matvii maksuuf
*जीवन को सुधारने के लिए भागवत पुराण में कहा गया है कि जीते ज
एक दिन थी साथ मेरे चांद रातों में।
काल के काल से - रक्षक हों महाकाल
हिन्दी दोहा बिषय-ठसक
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
लड़के रोते नही तो क्या उन को दर्द नही होता
Sandhya Chaturvedi(काव्यसंध्या)
मुझे सहारा नहीं तुम्हारा साथी बनना है,
कहनी चाही कभी जो दिल की बात...
Nowadays doing nothing is doing everything.