क्या पता मैं शून्य न हो जाऊं
हे! प्रभु आनंद-दाता (प्रार्थना)
थोड़ा सा अजनबी बन कर रहना तुम
यही सोचकर इतनी मैने जिन्दगी बिता दी।
“कब मानव कवि बन जाता हैं ”
“फेसबूक मित्रों की बेरुखी”
पिया मोर बालक बनाम मिथिला समाज।
ना मुझे मुक़द्दर पर था भरोसा, ना ही तक़दीर पे विश्वास।
कभी-कभी डर लगता है इस दुनिया से यहां कहने को तो सब अपने हैं
मौहब्बत की नदियां बहा कर रहेंगे ।
ग़ज़ल _ मंज़िलों की हर ख़बर हो ये ज़रूरी तो नहीं ।
काल चक्र कैसा आया यह, लोग दिखावा करते हैं
*हिंदी मेरे देश की जुबान है*