26 अगस्त1303 जौहर “रानी पद्मावती”
26अगस्त1303 16000वीरांगनाएं
सोलह श्रृंगार…हाँथ में पूजा की थाल…जगमगाती आभा
जलते दिये के बीच जागृत होता चैतन्य
जैसे शुन्य पे केंद्रित
निर्णय अटल
दिव्यमान
वो बढ़ रही होंगी;
नेतृत्व की मशाल लिये उस अग्निकुंड की तरफ
और अपनी महारानी के पीछे महलों की तुलसी के इर्दगिर्द
अबतक अपने अपने हिस्से के गौरव को जीती
आत्मयोद्धा सी प्रज्ज्वलित
वो हजारों दिव्य शक्तियां
?
जहाँ नतमस्तक होगा उसदिन पूरा ब्राह्मांड
और खुद
अग्निदेव ?
सिर झुकाये दहकते अंगारों के बीच
भावविह्वल उस हर एक जीवित वीर प्रणरुपी आहुतियों
के आगे जैसे निःशब्द होंगे…
मन कह रहा होगा… हे कर्मप्रधान कलयुग
क्युं देते हो ऐसी असुरी आत्मताओं को शरण
क्युं नहीं कृतघ्नता को जगाते समय रहते
अपने आँचल में गौरव समेटे इन दहकती वीरांगनाओं का जीवित प्रश्न
क्या कभी दोषमुक्त हो पाएगा आर्यावर्त
उन चंद अपनी ही जमीन, अपनी ही धरती, अपनी उस कोख से की गई गद्दारी करनेवालों से
जिसका परिणाम हमेशा चुकाया है तो बस वीरता ने।
लड़ना चाहिये था न मरने की क्या जरुरत थी
जब वर्चस्व सिर्फ अंधी संवेदना का हो तो संभव है हृदय में ये प्रश्न उठना…?
पर वर्चस्व जब जागती संवेदना का हो तो संभव है
द्रवित भावों के बीच हृदय का झुक जाना
शीतलता के अथाह सागर के बीच अग्नि कुंड की पवित्र आग होती है उसमें,
कायरता कभी नहीं छु सकती इस प्रबलता को।
एक योद्धा के रुप में समर्पित होने के बाद
मौन की जमीं पर सिंचन की बहती धारा के बीच;
जब निर्णय प्रबल हो उठता है
तो फिर ईश्वर उसे रोकता नहीं और वो किसी और की सुनता नहीं; खुद की भी नहीं।
पर भूल जाता है जीवन
समाज समय पर शोषण का आरोप लगा; आजादी के नाम पर तय सागर की सीमा को लांघ…अहम की आगोश में
खुद में कोलम्बस और सिकंदर देखने की भुख
कब जीवन को चंद जुनूनी शौक के आगे
घुटने टेकने पर मजबूर कर देती है
आभास ही नहीं रहता
और फिर कभी समझ नहीं आता
राम का प्रेम
सीता का रंग
हनुमान का बल
देवकी का मातृत्व
लक्ष्मी का संकल्प
जीजाबाई का प्रण
और सबसे महत्वपूर्ण;
आर्यावर्त का वो सफर जिसका नेतृत्व आज भी कर रही है; भरतवंशियों की वीरता, शकुंतला पुत्र भरत के भारत में।
जौहर की आग में प्रज्ज्वलित आज भी 16000वीरांगनाओं के रुप में विद्यमान वो आत्मयोद्धाएं
जिन्हें नमन करने के लिये बस एक नाम काफी है
रानी पद्मावती वंदन करो भारत!
©दामिनी नारायण सिंह