हर किसी में आम हो गयी है।
आज की दुनिया ऐसी ज़ालिम है...
दिल लगाया है जहाॅं दिमाग न लगाया कर
हिंदीग़ज़ल की गटर-गंगा *रमेशराज
"आँखों पर हरी पन्नी लगाए बैठे लोगों को सावन की संभावित सौगात
शब्दों की मिठास से करें परहेज
कठिन समय आत्म विश्लेषण के लिए होता है,
“तुम हो जो इतनी जिक्र करते हो ,
*सत्पथ पर सबको चलने की, दिशा बतातीं अम्मा जी🍃🍃🍃 (श्रीमती उषा
बहुत सुना है न कि दर्द बाँटने से कम होता है। लेकिन, ये भी तो
अनारकली भी मिले और तख़्त भी,
साथ है मेरे सफर में, ये काँटें तो अभी तक