स्त्रीलिंग...एक ख़ूबसूरत एहसास
मजबूरन पैसे के खातिर तन यौवन बिकते देखा।
हर बार बीमारी ही वजह नही होती
राम आयेंगे अयोध्या में आयेंगे
श्रद्धावान बनें हम लेकिन, रहें अंधश्रद्धा से दूर।
सिर्फ तेरे चरणों में सर झुकाते हैं मुरलीधर,
अगर मेरे अस्तित्व को कविता का नाम दूँ, तो इस कविता के भावार
*आचार्य बृहस्पति और उनका काव्य*
फिर से जिंदगी ने उलाहना दिया ,
तलाशता हूँ उस "प्रणय यात्रा" के निशाँ
मुक्तक
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'