लाज शर्म की फाड़ दी,तुमने स्वयं कमीज
उड़ जा,उड़ जा पतंग,तू ऐसे रे
वो हक़ीक़त पसंद होती है ।
बसंत
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
सार छंद विधान सउदाहरण / (छन्न पकैया )
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
मौहब्बत अक्स है तेरा इबादत तुझको करनी है ।
"मन की संवेदनाएं: जीवन यात्रा का परिदृश्य"
आम के आम, गुठलियों के दाम
उस सावन के इंतजार में कितने पतझड़ बीत गए
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी "
किण गुनाह रै कारणै, पल-पल पारख लेय।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया