इतना भी ख़ुद में कोई शाद अकेला न रहे,
कली कचनार सुनर, लागे लु बबुनी
तुम खुशी देखते हों, मैं ग़म देखता हूं
नाम:- प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
लाख बड़ा हो वजूद दुनियां की नजर में
*अदृश्य पंख बादल के* (10 of 25 )
ग़ज़ल _ करी इज़्ज़त बड़े छोटों की ,बस ईमानदारी से ।
आकांक्षा तारे टिमटिमाते ( उल्का )
*धरती के सागर चरण, गिरि हैं शीश समान (कुंडलिया)*
मौन की भाषा सिखा दो।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)