नारी के मन की पुकार
Anamika Tiwari 'annpurna '
कितने चेहरे मुझे उदास दिखे
धरती के कण कण में श्री राम लिखूँ
हम हमेशा सोचा करते थे कि सबके साथ अच्छा करेंगे तो हमारे साथ
ग़ज़ल __बुलबुलें खुश बहार आने से ।
सारी दुनिया समझ नहीं सकती ,
शामें दर शाम गुजरती जा रहीं हैं।
*मक्खन मलिए मन लगा, चमचागिरी महान (हास्य-कुंडलिया)*
आखिर कुछ तो सबूत दो क्यों तुम जिंदा हो
"Multi Personality Disorder"
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)