sp ,,95अब कोई आवेश नहीं है / यह तो संभव नहीं
**बकरा बन पल मे मै हलाल हो गया**
“अर्थ” बिना नहीं “अर्थ” है कोई ...
एक गरीब की इज्जत अमीर की शोहरत से कई गुना अधिक बढ़ के होती ह
थियोसॉफिकल सोसायटी की एक अत्यंत सुंदर *यूनिवर्सल प्रेयर* है जो उसके सभी कार्यक्र
रूस्वा -ए- ख़ल्क की खातिर हम जज़्ब किये जाते हैं ,
हैं दुनिया में बहुत से लोग इश्क़ करने के लिए,
मैं कविता लिखता हूँ तुम कविता बनाती हो
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
खुले आम जो देश को लूटते हैं।
मातृभूमि
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
किसी भी बात पर अब वो गिला करने नहीं आती