माँ तुझे मैं थामना चाहती हूँ
इन चरागों को अपनी आंखों में कुछ इस तरह महफूज़ रखना,
हारा हूं,पर मातम नहीं मनाऊंगा
सबका हो नया साल मुबारक
अंजनी कुमार शर्मा 'अंकित'
दोहा पंचक. . . शीत शृंगार
भँवर में जब कभी भी सामना मझदार का होना
ज़िन्दगी का यक़ीन कैसे करें,
जबसे हम चार पैसे कमाने लगे हैं
भिंगती बरसात में युँ ही बेचारी रात