चलती है जिन्दगी क्या , सांस , आवाज़ दोनों ,
मां की ममता को भी अखबार समझते हैं वो,
आप कभी 15% मनुवादी सोच को समझ ही नहीं पाए
ॐ
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
ओ मैना चली जा चली जा
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
"आज मैं काम पे नई आएगी। खाने-पीने का ही नई झाड़ू-पोंछे, बर्तन
मै पा लेता तुझे जो मेरी किस्मत करब ना होती|
दरअसल बिहार की तमाम ट्रेनें पलायन एक्सप्रेस हैं। यह ट्रेनों
गम के पीछे ही खुशी है ये खुशी कहने लगी।
जीवन की आपाधापी में देखता हूॅं ,
एक डरा हुआ शिक्षक एक रीढ़विहीन विद्यार्थी तैयार करता है, जो
मप्र लेखक संघ टीकमगढ़ की 313वीं कवि गोष्ठी रिपोर्ट
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'