नफ़रत ने जगह ले ली अब तो,
बहन का प्यार किसी दुआ से कम नहीं होता
*करते श्रम दिन-रात तुम, तुमको श्रमिक प्रणाम (कुंडलिया)*
एक कहानी सुनाए बड़ी जोर से आई है।सुनोगे ना चलो सुन ही लो
हर तूफ़ान के बाद खुद को समेट कर सजाया है
तेरा मुझे याद करना मेरी हिचकियों का ना थमना -
आते जाते रोज़, ख़ूँ-रेज़ी हादसे ही हादसे
लिखे को मिटाना या तो शब्दों का अनादर है या फिर भयवश भूल की स
अंधेरों में कटी है जिंदगी अब उजालों से क्या
डॉ कुलदीपसिंह सिसोदिया कुंदन
*किस्मत में यार नहीं होता*
ले आए तुम प्रेम प्रस्ताव,
क्षणिक तैर पाती थी कागज की नाव
तुम क्या जानो किस दौर से गुज़र रहा हूँ - डी. के. निवातिया
पितृ पक्ष में कौवों की सभा
हमने उनकी मुस्कुराहटों की खातिर
ज्ञान के दाता तुम्हीं , तुमसे बुद्धि - विवेक ।