25 , *दशहरा*
हर वर्ष की तरह, फिर…
“दशहरा”आया।
बुराई पर अच्छाई की ,
पाप पर पुण्य की जीत का…
पाठ पढ़ाया।
लेकिन मेरे मस्तिष्क में बार-बार…
यही विचार आया,
ये अच्छा – बुरा.. ..
ये पाप – पुण्य…
है किसने बनाया??
जो हो हमारे अनुरूप, वह पुण्य,
और जो प्रतिकूल…
वह पाप कहलाया।
जब-जब राम और रावण का…
प्रसंग आया,
आज के युग में..
मैंने तो रावण का पलड़ा ही…
भारी पाया।
माना उसने हरी, “सीता”,
लेकिन साथ ही …
मृगतृष्णा के पीछे…
ना भागने का ज्ञान सिखाया।
इच्छा विरूद्ध पर-नारी को ना छूकर…
मर्यादा का पाठ पढ़ाया।
एक हूक सी उठी दिल में…
जब राम ने अपनी ही पत्नी को…
‘अग्नि-परीक्षा’ में बिठाया।
काश! राम को भी कठघरे में खड़ा किया होता,
जिसने अपनी ही पत्नी के चरित्र पर..
सवाल उठाया।
यूँ तो हर गली, घर- घर में है रावण…
क्या उन्हें भी कभी आईना दिखाया?
क्या हर स्त्री, हर बेटी में..
‘देवी’ का वास समझाया?
क्यों, बस ‘रावण’ का पुतला जला ‘मधु’….
हर-वर्ष “दशहरा” मनाया।