सच के साथ ही जीना सीखा सच के साथ ही मरना
किसी को घर, तो किसी को रंग महलों में बुलाती है,
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*1977 में दो बार दिल्ली की राजनीतिक यात्राएँ: सुनहरी यादें*
धैर्य वह सम्पत्ति है जो जितनी अधिक आपके पास होगी आप उतने ही
सब कुछ दुनिया का दुनिया में, जाना सबको छोड़।
इक इक करके सारे पर कुतर डाले
सुनो पहाड़ की....!!! (भाग - ७)
(5) नैसर्गिक अभीप्सा --( बाँध लो फिर कुन्तलों में आज मेरी सूक्ष्म सत्ता )
जादू था या जलजला, या फिर कोई ख्वाब ।
देह अधूरी रूह बिन, औ सरिता बिन नीर ।
अब भी देश में ईमानदार हैं