बेटी का घर बसने देती ही नहीं मां,
"अपनी शक्तियों का संचय जीवन निर्माण की सही दिशा में और स्वतं
डॉ कुलदीपसिंह सिसोदिया कुंदन
सभी कहने को अपने हैं मगर फिर भी अकेला हूँ।
देकर घाव मरहम लगाना जरूरी है क्या
खिचड़ी यदि बर्तन पके,ठीक करे बीमार । प्यासा की कुण्डलिया
मैं अक्सर देखता हूं कि लोग बड़े-बड़े मंच में इस प्रकार के बय
कोई दवा दुआ नहीं कोई जाम लिया है
हमारे पास हार मानने के सभी कारण थे, लेकिन फिर भी हमने एक-दूस
ज़माना इश्क़ की चादर संभारने आया ।
माना कि मेरे इस कारवें के साथ कोई भीड़ नहीं है |
पुरानी खंडहरों के वो नए लिबास अब रात भर जगाते हैं,
बुढ़ापा अति दुखदाई (हास्य कुंडलिया)
आखरी है खतरे की घंटी, जीवन का सत्य समझ जाओ
मैं हूँ के मैं अब खुद अपने ही दस्तरस में नहीं हूँ
धरती के कण कण में श्री राम लिखूँ
पत्थर दिल का एतबार न कीजिए