जीव के मौलिकता से परे हो,व्योम धरा जल त्रास बना है।
“ सर्पराज ” सूबेदार छुछुंदर से नाराज “( व्यंगयात्मक अभिव्यक्ति )
तसल्ली के लिए इक इक कोने की तलाशी कर लो
सम्मान तुम्हारा बढ़ जाता श्री राम चरण में झुक जाते।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
नशा-ए-दौलत तेरा कब तक साथ निभाएगा,
झाग की चादर में लिपटी दम तोड़ती यमुना
*शत-शत नमन प्रोफेसर ओमराज*
*"राम नाम रूपी नवरत्न माला स्तुति"
तू ने आवाज दी मुझको आना पड़ा
प्रीति क्या है मुझे तुम बताओ जरा
निरंजन कुमार तिलक 'अंकुर'
ग़ज़ल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD