सोच हमारी अपनी होती हैं।
24/250. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः। नमो नमस्ते तुल
मन पर मन को मन से मिलाना आसान होगा
काश आज चंद्रमा से मुलाकाकत हो जाती!
गले लगाना है तो उस गरीब को गले लगाओ साहिब
इश्क़ छूने की जरूरत नहीं।
मोर
Prithvi Singh Beniwal Bishnoi
खुशनुमा – खुशनुमा सी लग रही है ज़मीं
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
ना कर नज़रंदाज़ देखकर मेरी शख्सियत को, हिस्सा हूं उस वक्त का
सावन
डॉ राजेंद्र सिंह स्वच्छंद
"रूप" की गली से आरंभ होकर "नर्क" के गलियारे तक का मर्म बताने
आजकल लोग बहुत निष्ठुर हो गए हैं,
गांधी होने का क्या अर्थ है?