"देखा था एक सपना, जो साकार हो गया ll
पुछ रहा भीतर का अंतर्द्वंद
पलकों से रुसवा हुए, उल्फत के सब ख्वाब ।
आप कभी 15% मनुवादी सोच को समझ ही नहीं पाए
नौकरी गुलामों का पेशा है।
मुझ जैसे शख्स को दिल दे बैठी हो,
मुझसे जुदा होके तू कब चैन से सोया होगा ।
अंधेरा छंट जाए _ उजाला बंट जाए ।
*धरती पर सब हों सुखी, सारे जन धनवान (कुंडलिया)*
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मैं मगर अपनी जिंदगी को, ऐसे जीता रहा
"हमें चाहिए बस ऐसा व्यक्तित्व"