24- वासना
वासना
वासना वशीभूत नर-नारी दुखी होते।
चैन नहीं पाते कभी जागते न सोते।।
चोरों जैसा जीवन बसर करना पड़ता।
पाने को क्षणिक आनन्द विषाद सहना पड़ता ।।
आँखें चुराते भेद खुलने के डर से।
मान नहीं पाते चल दूषित डगर से ।।
वासना के जाल में बड़े ही झमेले ।
साथ कोई देता नहीं सदा रहते अकेले।।
गिरते ऐसे लोग समाज की नजर में ।
मार-काट, कलह रहती जीवन सफर में ।।
पुलिस, थाना, जेल तक की नौबत आ जाती।
पिटते सड़क बीच फिर भी अकल न आती।।
वासना की चादर ओढ़ रखते कुदृष्टि ।
जीवन बर्बाद होता मिले ने संतुष्टि ।।
“दयानंद”