2329.पूर्णिका
2329.पूर्णिका
🌹दो जून की रोटी के लिए तरसता रहा 🌹
22 122 22 122 1212
जो खूं पसीना बस एक लगन करता रहा ।
दो जून की रोटी के लिए तरसता रहा ।।
यूं जिंदगी भर कोई खुशी दे तलाशते ।
हरदम जमाना उस पर कहर बरसता रहा ।।
इंसान निकला था सफर में हमसफ़र बने ।
पर राह चलते वो हर जहाँ भटकता रहा ।।
बातें सुमन की करते काँटे की तरह चुभन ।
ऐसा चमन भी मन में यहाँ खटकता रहा ।।
इंसानियत खेदू है कहाँ सब मरे मिटे ।
नादां नहीं सोच दिमाग भी सरकता रहा ।।
………….✍डॉ .खेदू भारती”सत्येश”
2-6-2023शुक्रवार